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एक सन्यासी और एक वेश्या-vaigyatm

ये कहानी है स्वामी विवेकानंद की, एक अनुभव की , और एक घटना जो एक वेश्या के साथ घटित हुई।
बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद की ख्याति दूर -दूर तक फ़ैल चुकी थी । तब राजस्थान के एक राजा ने स्वामी जी को अपने यहाँ बुलाया । स्वामी जी ने प्रस्ताव स्वीकार भी किया और वे गए भी ।
पर राजा साहब ने स्वामी जी के सम्मान में एक कार्यकम का आयोजन किया और उन्होंने इस कार्यकम में गाने के लिए दिल्ली से एक वेश्या को बुला लिया।
जैसे ही ये बात स्वामी जी को पता चली की उनके सम्मान में हो रहे कार्यकम में एक वेश्या आई है उनका मन चिंता से भर गया भला वेश्या का एक सन्यासी के कार्यकम में क्या काम।
दरअसल कहानी इससे भी पुरानी है स्वामी विवेकानंद का घर जिस जगह में था वहा तक पहुचने के लिए वेश्याओ के एक मोहल्ले से गुजरना पड़ता था और स्वामी जी सन्यासी थे और वेश्याओ के मुह्हले से गुजरना वे सन्यास धर्म के विरुद्ध मानते थे ।
इसलिए स्वामी जी को  घर तक पहुचने के लिए 2 मील का चक्कर लगाना पड़ता था।
अब आप समझ सकते है जो व्यक्ति वेश्याओ के मोहल्ले से गुजरता तक नहीं है वो भला ऐसे कार्यकम में कैसे जाता हुआ भी यही उन्होंने कार्यकम में जाने से मना कर दिया ।
पर इसके बाद जो हुआ उसने स्वामी जी का जीवन बदल दिया ।

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स्वामी जी कार्यकम में नहीं आ रहे है यह बात वेश्या को भी पता चली तब उसने "" प्रभु जी मेरे अवगुण चित न धरो"" गाना प्रारम्भ कर दिया । और गाने की ध्वनी स्वामी विवेकानन्द तक पहुची और वो ये गीत सुन तुरंत अंदर कार्यकम स्थल में चले गए स्वामी जी को देख उसकी आँखो से आंसू छल-छल कर बहाने लगे ।
इस घटना के बाद स्वामी विवेकानंद को दो अनुभूति हुई ।
पहली ये की वेश्या को देख उनके मन में न आकर्षण था न प्रतिकर्षण तब उन्हें यह अनुभूति हुई की अब वे पूर्ण सन्यासी बन चुके है ।

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एक भारतीय जो आईंस्टीन से भी अधिक बुद्धिमान था -वैज्ञात्म


और दूसरा ये के सच्चा पारश वही है जी लोहे को सोना बनाता है लोहे के स्पर्श से स्वयं लोहा नहीं बनता
उसी तरह एक सन्यासी एक योगी बुरे से बुरे व्यक्ति को भी सज्जन बना देता है उसका काम ही यही है और ऐसा करते हुए उसे यदि ये लगता है की उसका सन्यास धर्म खंडित होगा तो अभी उसमे सच्चे सन्यासी के गुण पैदा नहीं हुऐ है।
वे समझ चुके थे की एक सन्यासी का उद्देश्य समाज को शुद्ध करना है और ऐसा करने में उसे सम्मान की हानि होने का भय है तो वो सन्यासी ही नहीं ।
क्योकि सन्यासी का उद्देश्य सम्मान प्राप्त करना नहीं है।



चिड़िया का संघर्ष- prerak kahaniya

आज सुबह मैंने देखा मेरे घर के सामने भंडारा चल रहा था लंबी टेबल खीर से भरे बड़े बड़े गंज और टेबल के ऊपर खीर से भरे दोने जैसे ही में बाहर निकला एक दोस्त आवाज देकर मुझे बुलाता है हम दोनों खीर बाटने में सहयोग करने लगे थोडा देर बाद हम फ्री हो गए हो हम दोनों ने भी एक एक दोना खीर ली और खाने लगे दरअसल खाली दोना (प्लास्टिक की कटोरी) फेकने का डब्बा थोडा दूर रखा था तो दोस्त ने दोना ऐसे ही फेक दिया न केवल उसने बल्कि लगभग 95 प्रतिसत लोगो ने बाहर ही दोना फेके थे तब मेने अपने दोस्त को दोना कचड़े के डिब्बे में फेकने का कहा । तो उसने कहा सभी तो बाहर फेक रहे है दो लोगो के डब्बे में में फेकने से क्या फर्क पड़ जायेगा ।
तब मैंने उसे एक कहानी सुनाई जो मेने कही सुन रखी थी।

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अपाची नाम का एक विशाल घनघोर जंगल हुआ करता था जंगल बहुत बड़ा था हजारो किलोमीटर में फेल हुआ उस जंगल पर भाँति भाँति के जीव जंतु रहते थे हाथी घोडा शेर बाघ हिरन सर्प चिड़िया और न जाने क्या क्या ।
एक बार गर्मियों के दिनों पर जोर दार तूफान आया और बॉस के पेड़ आपस में रगड़ने से उन पर आग लग जाती है और ये आग सारे जंगल में फैलने लगाती है आग को फैलता देख सभी जानवर जंगल से बाहर आ जाते है और जंगल को जलता हु देखते और सभी शोक व्यक्त करते है कुछ तो आग का जिमेदार ईश्वर दो बताते है और कहते है भगवान को ऐसा नहीं करा चाहिए था।
इस बीच एक चिड़िया अपनी चोच में झील से पानी भर्ती और जंगल की आग पर डाल देती । ये बो बार बार कर रही थी ये देख सारे जानवर आश्चर्य चकित होते है और फिर उस चिडिया पर जोर जोर से हस्ते है ।
और इस बीच हाथी कहता है तुम हजार बार में जितना पानी डालोगी उतना तो मैं अपनी सूंड से एक बार में ही डाल सकता हु ।
तब चिड़िया कहती है मुझे ये बात पता है और ये भी पता है की मेरे पानी डालने से ये आग नहीं बुझाने वाली ।
पर इतना पता है की जब कभी इस जंगल में इस आग का इतहास लिखा जायेगा तब मेरा नाम समर्थ न होते हुआ भी जंगल के लिए  संघर्ष करने वालो में और आप का नाम समर्थ होते हुऐ भी तामासा देखने वालो में लिया जायेगा।
दोस्तों यही तो हमारे साथ भी होता है की आखिर हमारे बस ईमानदार होने से , हमारे बस कचड़ा कूड़ेदान में डालने से , हमारे बस पानी बचाने से क्या होगा ।
बहुत कुछ होता है मेरे दोस्त बहुत कुछ।
इतने बड़े बड़े राजाओ के होते हुये छोटे से राज्य झांसी, की रानी , या आजाद हिन्द फौज बनाने वाले नेताजी ने ने यही सोचा होता तो शायद ही हम आजाद होते ।
फिर क्यों ना 1857 की क्रांति असफल रही हो या असफल आजाद हिन्द फौज हो इनका नाम हम गर्व से लेते है क्योकि से तमासा देखने वालो में नहीं संघर्ष करने वालों में से थे।
फर्क पड़ता है मेरे दोस्त फर्क पड़ता है ।
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बिरजू चरवाहे की भेड़ - prerak kahaniya


बसंत का मौसम था अब वो सब कुछ जो पुराना लगता था कुछ नया नया सा लगने लगा था पेड़ो पर चहचहाते पंछी मधुरता के साथ बहने वाली हवा सब कुछ मनो जन्नत सा सुबह जा वक्त था किसी के चिल्लाने की आवाज आती है बिरजू ऐ बिरजू उठता नहीं है उठ देख बेटा सबेरा हो गया है ।
ऐसा कहते हुए बिरजू की माँ बिरजू के पास पहुची और उसे उठाने लगी उठ बेटा फिर भेड़ चराने भी तो जाना है देर करेगा तो तेरे बाबा नाराज होंगे ।
बिरजू एक 14 -15 साल का लड़का था शरीर से पतला दुबला पर मेहनती बहुत था मूल रूप से बिरजू और उसका परिवार मंगाता थे मतलब मांग कर खाने वाले पर अब ये भेड़ भी पालने लगे है बिरजू के पिता मजदूरी करते है गरीबी है बिरजू पढ़ने नहीं जाता बस दिन भर भेड़ चराता है ।
वैसे तो बिरजू के यहाँ 25 से 30 भेड़े है पर बिरजू का लगाव एक भेड़ से कुछ ज्यादा था और बिरजू ने उसका नाम रखा था मैना।
मैना दिखती भी सुन्दर है बड़े कान  भोला सा मुख धने बाल बिरजू मैना के साथ दिनभर खेलता कभी कभी अपने खाने से एक आधी रोटी मैना को भी दे दिया करता था ।
बिरजू वैसे तो था बहुत सीधा साधा पर अपनी सभी भेड़ो से प्यार बहुत करता था किसी कुत्ते या कोई बड़े सींग वाले जानवर की क्या मजाल जी बिरजू के रहते हुये भेड़ो को सता सके।
माँ को चिल्लाते सुन बिरजू एकाएक हक्का बक्का सा होकर उठता है मासूम से चहरे पर नीद ख़राब करने की जल्लाहट पर बिरजू करात भी तो क्या भेड़ चराने भो तो जाना है बाहर आकर देखता है तो सूरज लाल था जैसे अभी निकला हो बिरजू माँ से कहता है देखो अभी तो सूरज भी पूरी तरह से नहीं जागा है तुम भी मुझे सबेरे से उठा देती हो दरअसल रात को नोखे चाचा के यहाँ सिनेमा लगा था बिरजू देररात तक सिनेमा देखता रहा और सुबह माँ ने भी जल्दी उठा दिया ।

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कुछ देर हुई थी की माँ कलेवा (खाना) कपडे में बांध का देती है अब बिरजू दिनभर के लिए भेड़ चराने को जाने बाला जो था।
बिरजू घर ले निकलने वाला ही था की साहूकार चला आता है आया क्यों होगा वहीँ अपना पैसा लेने कभी बिरजू की माँ बीमार हुई तो बापू ने उधार लिया था न जाने क्या हिसाब है 10 साल से पैसा लोटा रहे कर्ज ख़त्म होता ही नहीं।
ऐ बिरजू की माँ बिरजू का बापू कहा है अभी घर में नहीं है आयंगे तो बता देंगे आप आए थे ।
साहूकार की बेईमानी बिरजू समझता था जैसे ही साहूकार को देखा झल्ला उठता पर कर कुछ न पाता ।
साहूकार के जाने के बाद बिरजू भेड़ लेकर जंगल की और निकल पड़ा पर रास्ते भर भगवान को कोसता रहा यदि हमें पाल नहीं सकता तो पैदा ही क्यों किया सारी रहमत बस उस साहूकार पर अरे भगवान तू है भी या नहीं यदि है तो हमारा साथ क्यों नहीं देता है ।
बिरजू ऐसा सोच रहा था शायद आप सभी के मन में भी कभी न कभी ऐसे विचार जरूर आते होंगे ।
बिरजू ऐसे सोचते हुआ काफी आगे चला आया था घास का बड़ा मैदान था किनारे एक झील मैदान के बीच में एक बरगद का पेड़ बिरजू अपनी भेड़ो को रोज यही चराता था ।
बिरजू बरगद के नीचे बैठ आराम करने लगा कल देर तक जगा था और सुबह माँ ने भी जल्दी उठा दिया था इसलिए नींद उसकी आखो में थी और ठंडी हवा में पता ही नहीं चला कब बिरजू की आँख लग गयी रोज ऐसा न होता था ।
मैना बार बार बिरजू का चक्कर लगा रही थी । थोडा देर में वो भी चरने चली गयी सभी भेड़े तो यही समझ रही है वे उनके चरवाहे की देख रेख में है और इस लिए सभी निश्चिन्त थी एका एक झाड़ियो पर कुछ हलचल होती है और एक भेड़िया निकल कर आता है ये नई बात नहीं ऐसे भेड़िये पहले भी शिकार के लिए आते रहे है पर बिरजू चौकन्ना रहता था और मोटे तगड़े डंडे से वो मार मरता की भेड़िया दूर दूर तक नजर नहीं आता पर इस बार क्या बिरजू तो गहरी नींद में है पुरे झुंड को बिरजू का ही इंतजार था मैना को तो विश्वास और भी जयादा है  उसे लगता बिरजू अभी आये जाता है और वो खुद ही भेड़िये से दोदो हाथ के लिए आगे अ जाती है मैन को आगे आते देख सारा झुण्ड उसके साथ आगे आता है इन्हें इतना विश्वास न था की हम भेड़िये को हरा सकते है पर जब तक उन का रकछक बिरजू नहीं आता भेड़िया का निवाला बनने से तो अछा है की उस से लड़ ले । भेड़िया जोर जोर से गुर्रा रहा था ।इस गुर्राहट की आवाज से बिरजू की नींद खुल जाती है सामने जो हो रहा है उसे देख वो भोचक्का हो जाता है एका एक मन किया की जाकर भेड़िया को दो लठ लगाये पर एका एक उसके कदम ठहर जाते है गले से मनो आवाज ही नहीं निकल रही थी वह बस देख रहा था केवल और केवल देख रहा था ।
भेड़े ये सोच कर के उनका चरवाहा उनके साथ है एक साथ भेड़िया पर हमला करती है 25 -30 भेड़ो के एक साथ हमला करते देख भेडिया भाग खड़ा होता है
हमारे साथ भी ऐसा होता है जब भी हम इस विश्वास से की हमारा ईस्वर हमारे साथ है के साथ संघर्ष करते है तो असंभव लगने वाले काम को भी आसानी से कर लेते है ।
पेड़ के नीचे खड़ा बिरजू भी शायद ये समझ गया है वो भेड़ो की तरफ दोडता है मैना भी उसके तरफ दौड़ लगती है बिरजू उसे गोद में उठा लेता है उसकी आँखों से आंसू बह रहे है वो सारी भेड़ो को लेकर घर की ओर चल पड़ता है उसकी आँखो में आंसू जरूर है पर अब उसे जिंदगी या भगवान से कोई शिकायत नहीं है ।
शायद अब वो कुछ ऐसा करेगा जो उनकी माँगता की उनकी पहचान बदल सके।
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