चिड़िया का संघर्ष- prerak kahaniya

आज सुबह मैंने देखा मेरे घर के सामने भंडारा चल रहा था लंबी टेबल खीर से भरे बड़े बड़े गंज और टेबल के ऊपर खीर से भरे दोने जैसे ही में बाहर निकला एक दोस्त आवाज देकर मुझे बुलाता है हम दोनों खीर बाटने में सहयोग करने लगे थोडा देर बाद हम फ्री हो गए हो हम दोनों ने भी एक एक दोना खीर ली और खाने लगे दरअसल खाली दोना (प्लास्टिक की कटोरी) फेकने का डब्बा थोडा दूर रखा था तो दोस्त ने दोना ऐसे ही फेक दिया न केवल उसने बल्कि लगभग 95 प्रतिसत लोगो ने बाहर ही दोना फेके थे तब मेने अपने दोस्त को दोना कचड़े के डिब्बे में फेकने का कहा । तो उसने कहा सभी तो बाहर फेक रहे है दो लोगो के डब्बे में में फेकने से क्या फर्क पड़ जायेगा ।
तब मैंने उसे एक कहानी सुनाई जो मेने कही सुन रखी थी।

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अपाची नाम का एक विशाल घनघोर जंगल हुआ करता था जंगल बहुत बड़ा था हजारो किलोमीटर में फेल हुआ उस जंगल पर भाँति भाँति के जीव जंतु रहते थे हाथी घोडा शेर बाघ हिरन सर्प चिड़िया और न जाने क्या क्या ।
एक बार गर्मियों के दिनों पर जोर दार तूफान आया और बॉस के पेड़ आपस में रगड़ने से उन पर आग लग जाती है और ये आग सारे जंगल में फैलने लगाती है आग को फैलता देख सभी जानवर जंगल से बाहर आ जाते है और जंगल को जलता हु देखते और सभी शोक व्यक्त करते है कुछ तो आग का जिमेदार ईश्वर दो बताते है और कहते है भगवान को ऐसा नहीं करा चाहिए था।
इस बीच एक चिड़िया अपनी चोच में झील से पानी भर्ती और जंगल की आग पर डाल देती । ये बो बार बार कर रही थी ये देख सारे जानवर आश्चर्य चकित होते है और फिर उस चिडिया पर जोर जोर से हस्ते है ।
और इस बीच हाथी कहता है तुम हजार बार में जितना पानी डालोगी उतना तो मैं अपनी सूंड से एक बार में ही डाल सकता हु ।
तब चिड़िया कहती है मुझे ये बात पता है और ये भी पता है की मेरे पानी डालने से ये आग नहीं बुझाने वाली ।
पर इतना पता है की जब कभी इस जंगल में इस आग का इतहास लिखा जायेगा तब मेरा नाम समर्थ न होते हुआ भी जंगल के लिए  संघर्ष करने वालो में और आप का नाम समर्थ होते हुऐ भी तामासा देखने वालो में लिया जायेगा।
दोस्तों यही तो हमारे साथ भी होता है की आखिर हमारे बस ईमानदार होने से , हमारे बस कचड़ा कूड़ेदान में डालने से , हमारे बस पानी बचाने से क्या होगा ।
बहुत कुछ होता है मेरे दोस्त बहुत कुछ।
इतने बड़े बड़े राजाओ के होते हुये छोटे से राज्य झांसी, की रानी , या आजाद हिन्द फौज बनाने वाले नेताजी ने ने यही सोचा होता तो शायद ही हम आजाद होते ।
फिर क्यों ना 1857 की क्रांति असफल रही हो या असफल आजाद हिन्द फौज हो इनका नाम हम गर्व से लेते है क्योकि से तमासा देखने वालो में नहीं संघर्ष करने वालों में से थे।
फर्क पड़ता है मेरे दोस्त फर्क पड़ता है ।
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