एक भारतीय जो आईंस्टीन से भी अधिक बुद्धिमान था -story of swami vivekananda in hindi


story of swami vivekananda in hindi

11 सितम्बर 1893 जगह अमेरिका एक महासभा हजारो लाखो लोग सैकड़ो विद्वान और यही कोई 29 से 30 साल का भारतीय नवयुवक इसने भी अपना नाम वक्तव्य देने के लिए नामांकित करा रखा है जैसे - जैसे इसकी बारी नजदीक आ रही है  घबराहट बढ़ती जा रही है लो अब नाम भी बोल दिया गया है नवयुवक अपनी जगह से उठता है इसके माथे में पसीना आ रहा है तो क्या ये अभी वक्तव्य देने के लिए तैयार नहीं है शायद पर वो बोलता है।
और उसने वक्तव्य की शुरुआत ही कुछ ऐसे शब्दों के साथ किया की सारी सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी ।
वे शब्द थे मेरे # मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनो# और वो नवयुवक कोई नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद थे ।
स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए ही महा सभा में हिंदुत्व के विचार को रखने के लिए पर महासभा के तरफ से उन्हें बुलाया नहीं गया था ।
जब वो भारत में थे तब उन्होंने विश्व धर्म महासभा के आयोजन के बारे में सुना था तभी से उन्होंने अमेरिका जाने का निर्णय ले लिया था । तब एक भारतीय राजा ने इन्हें अमेरिका तक जाने में सहायता की पर सवाल था की महा सभा के मंच तक कैसे पंहुचा जाये उस समय संयोग से स्वामी जी की मुलाकात एक प्रोफ़ेसर से हुई जो पहले भी स्वामी विवेकानंद से मिल चुके थे और उनके गहन और क्रांतिकारी विचारो से परचित थे उन्होंने अथक प्रयास कर स्वामी जी को महा सभा में अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति दिलवाई।
प्रारम्भ में इसका बहुत विरोध हुआ पर जब तक स्वामी जी ने अपने विचार दुनिया के सामने रखे तब जो लोग प्रारम्भ में उनका विरोध कर रहे थे अब उनके अनुयायी बन चुके थे।
ये तो हुई उस घटना की बात जिसके बाद न केवल भारत बल्कि दुनिया ने ये जाना की कोन है स्वामी विवेकानंद ।
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पर यदि उनकी बौद्धिक छमता की बात की जाये तो वो आईंस्टीन से भी कही अधिक थी इस से जुड़ा एक वाक्य में आप को बताना चाहता हु।
स्वामी जी किताबे बहुत अधिक पढ़ते थे उनके शिष्य पुस्तकालय से रोज एक नई किताब लाते और ली हुई पुरनी किताब वापस जमा करते।ऐसा रोज होता था तब रोज -रोज की इस अदला बदली से पुस्तकालय वाला परेशान हो गया और किताब देने से मना कर देता है उसका कहना था की इतनी मोटी - मोटी किताबे कोई एक दिन में पढ़ ही नहीं सकता और आप रोज किताब बदलने आ जाते हो आप बस हमें परेशान करना चाहते हो ।
ये सारी बाते शिष्य ने स्वामी जी से बतायी तब स्वामी जी जो किताब बदलनी थी उसे लेकर स्वयं पुस्तकालय पहुच गए और वहा जाकर पुस्तक बदलने को कहा जब उस व्यक्ति ने वही बात दोहराई तो स्वामी जी ने कहा की यदि आप को लगता है की हमारा उदेध्य आप को परेशान करना है तो आप इस किताब में से जो चाहे वह आप पूछ लीजिये यदि मै नहीं बता पाया तो दोबारा किताब लेने नहीं आऊंगा।
तब व्यक्ति ने जो जो पूछा स्वामी जी ने हर प्रश्न का उत्तर दिया तथा यह तक बताया की यह बात किताब के किस पृष्ठ में है ।

इन्हें भी पढ़े।

यह देख की कोई कैसे इतनी मोटी किताब को एक दिन में इस तरह पढ़ सकता है वह अचंभित हो गया ।
उसने स्वामी जी से छमा मांगी और उनका अनुयायी बन गया।
वास्तव में स्वामी जी से जुड़े जितने भी लोग है कही न कही वो इस बात का जिक्र जरूर करते है के स्वामी जी की बौद्धिक छमता अद्भुत थी।
पर उन्होंने अपनी खोज का केंद्र केवल और केवल ईस्वर को रखा और वे इस पर सफल भी हुए।
वो एक ऐसे व्यक्तिव थे वो बास्तव में हिंदुत्व को वास्तविक अवस्था में लोगो तक पहुचते है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है की यदि हिन्दू हिंदुत्व  और हिंदुस्तान को समझना है तो आप स्वामी विवेकानंद को समझिये।
सत्य ही है इनके विचार तर्क के आधार पर खड़े है और इतने शक्तिशाली है की वो किसी भी साधरण इंसान को असाधरण बना सकते है ।
आप एक व्यक्ति जिन्हें लोग अन्ना हजारे कहते है को जरूर जानते होंगे आप उनसे पूछिये तो अन्ना को अन्ना उन्ही स्वामी विवेकानन्द की एक किताब ने बनाया है
ये बात वे खुद कहते है ।
तो आप सोचिये की जिनके विचार इतने प्रभावी है वो खुद कितने प्रभावी रहे होंगे।
स्वामी जी ने वास्तव में जीवन भर क्या किया इसे जानने के लिए एक नए स्वामी बिवेकानंद की जरुरत है यह बात स्वयं स्वामी जी ने कही है।
बचपन में स्वामी विवेकानंद जितने शरारती थे युवा होते होते वो उतने धैर्य और विवेक के परिचायक बने ।
वो मानते थे की सभी जीव ईस्वर का ही एक रूप है जात धर्म या समुदाय के आधार पर इनमें भेद करना स्वयं ईस्वर का अपमान है उन्होंने आडम्बरो  का घोर विरोध किया वे पुरोहित प्रथा का भी विरोध करते थे।
स्वामी विवेकानंद ने कहा मंदिर में बैठे 33 करोड़ देवी देवताओ को हटा देना चाहिए और वहा 33 करोड़ भूखे और असहाय लोगो को बिठा उन्हें भोग लगाओ ।
यही ईस्वर की आराधना होगी।
वास्तव में स्वामी विवेकानंद को समझ लोग जीवन को बदल सकते है दुःख निराशा कष्ट सब अज्ञानता के मूल से जन्म लेते है ।
यदि स्वामी जी के बारे में बात की जाये तो हम सालो तक कर सकते है लिखा जाये तो ग्रन्थ कम पड़ जायँगे।
पर से भी सच है वो व्यक्ति जिसका मष्तिस्क आईंस्टीन से भी तेज था उन्हें समझे के लिए हमें 1 प्रतिशत दिमाग तो इस्तेमाल करना ही होगा।

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